दिल्ली सरकार का शिक्षा में बड़ा सुधार सभी Private schools के लिए अब फीस नियम अनिवार्य

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Private schools: दिल्ली में प्राइवेट स्कूलों की फीस बढ़ोतरी पर अब कड़ी रोक लगने वाली है। इस नए कानून का उद्देश्य सिर्फ फीस बढ़ाने की मनमानी रोकना नहीं, बल्कि पारदर्शिता और अभिभावकों की भागीदारी सुनिश्चित करना है। इस कदम ने दिल्ली के लाखों परिवारों के मन में राहत और उम्मीद की नई किरण जगाई है।

नई शिक्षा विधि बच्चे का अधिकार, माता-पिता की आवाज़

दिल्ली सरकार का शिक्षा में बड़ा सुधार: सभी Private schools के लिए अब फीस नियम अनिवार्य

दिल्ली विधानसभा ने अगस्त 2025 में ‘दिल्ली स्कूल एजुकेशन (Transparency in Fixation and Regulation of Fees) Bill, 2025’ पारित कर एक नयी राह शुरू की है। अब पहले की तरह 300 नहीं, बल्कि 1,700 प्राइवेट स्कूलों को इस नियम की सीट पर लाया गया है। यह विधेयक फीस तय करने में पारदर्शिता लाएगा और स्कूलों की मनमानी शुल्क वृद्धि रोकने में अभिभावकों को अधिकार देगा।

अभिभावकों को मिली हिस्सेदारी और वीटो का अधिकार

इस विधेयक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह अभिभावकों को फीस तय करने की प्रक्रिया में शामिल करता है। स्कूल-स्तर की फीस कमेटी में अभिभावकों, शिक्षकों, स्कूल प्रबंधन और शिक्षा विभाग के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा। अगर फीस बढ़ाने का प्रस्ताव आता है, तो अभिभावकों को उसे रोकने यानी वीटो करने का अधिकार मिलेगा।

फीस वृद्धि पर नियंत्रण समयसीमा और सख्त दंड प्रक्रिया

इस नए कानून के तहत फीस बढ़ाने के प्रस्ताव पर निर्णय के लिए स्पष्ट समयसीमा तय की गई है। प्रस्ताव सबसे पहले स्कूल-स्तरीय समिति में जुलाई 15 तक आएगा। अगर वहीं नहीं सुलझा तो जिला स्तर की समिति जुलाई 30 तक और अंतिम निर्णय सितंबर तक लिया जाएगा। यदि 45 दिन में कोई नतीजा नहीं निकला, तो मामला अपीलीय समिति को भेज दिया जाएगा। इसके अलावा बिना अनुमति फीस बढ़ाने पर स्कूलों को 1 लाख से 10 लाख रुपये तक का जुर्माना देना होगा, और अतिरिक्त फीस वापस नहीं करने पर जुर्माना दोगुना होगा।

जवाबदेही में नई शक्ति Education Dept की एसडीएम जैसी क्षमता

अब स्कूलों पर शुल्क अधिस्थापन में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए शिक्षा विभाग (DoE) को सब-डिविजनल मैजिस्ट्रेट की तरह अधिकार दिए गए हैं। इस बदलाव का लक्ष्य शिक्षा क्षेत्र में जवाबदेही और नियंत्रण की भावना को मज़बूत बनाना है।

अभिभावकों की राहत, लेकिन विरोधी आवाज़ें भी उठीं

मुख्यमंत्रीनेक सरकार ने इस सुधार को “शिक्षा क्षेत्र में क्रांति” कहा है। लेकिन आलोचकों का आरोप रहा है कि यह विधेयक स्कूलों को अधिक अधिकार दे रहा है और अभिभावकों की असली भागीदारी खतम कर रहा है। AAP के पूर्व शिक्षा मंत्री ने इसे अभिभावकों के लिए जोखिम भरा बताया है क्योंकि सरकारी और न्यायिक निगरानी कमजोर हो सकती है।

शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता की ओर कदम

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यह नया शिक्षा विधेयक दिल्ली में प्राइवेट स्कूलों की फीस व्यवस्था को सुधारने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और परिवारों को वित्तीय राहत मिलेगी, जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुलभ बन सके। सही रूप से लागू होने पर यह विधेयक शिक्षा क्षेत्र में ज़िम्मेदारी और न्याय का नया अध्याय लिख सकता है।

Disclaimer: यह लेख केवल जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। कानूनों और नियमों में बदलाव हो सकते हैं, इसलिए अधिकारिक स्रोतों से पुष्टि करना सुझावनीय है।

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